Thursday, August 6, 2009

पत्थर के सनम

अपने उ प्रदेश में जब से सामाजिक परिवर्तन की बयार बही है , तब से यहां की मूर्तियां देवालय से उड़ –उड़ कर न्यायालय में पहुंचने लगी हैं। चूँकि वहां पहले से ही न्याय के मूर्ति विराजमान हैं , लिहाज़ा उन मूर्तियों का इन मूर्तियों से वाद- विवाद होना लाजिमी है । मूर्तियों के इस अमूर्तकाण्ड के समस्त अध्यायों को अनवरत सुनने के लिए वह आम आदमी मौजूद है, जो डाल- डाल पर लगे आम को निहार तो सकता है परंतु उसे बाज़ार से घर लाने के लिए ‘लोन’ की जुगाड़ में रहता है।
ख़ैर ! अपुन... आम आदमी की बात क्यों करे । अपुन को कौन सा चुनाव लड़ना है ;जो आम आदमी का मुद्दा उछाले । दरअसल, अपुन तो उस खास आदमी पर जुगाली करना मागंता है जो पत्थर की भीतर घुस कर उसके अन्दर के गुण ढूढं रहा है। वैसे अपने यहां बच्चे – बच्चे को कण – कण में भगवान की बात जन्म घुट्टी के साथ बताई जाती है लेकिन जिन्होने पत्थर में इंसान ढूंढ लिए है , वह सच में बधाई के पात्र हैं । अत: सिर्फ अहिल्या बाई के शिला से इंसान बनने की कथा सुनने वाले अब आँख, नाक कान इत्यादि खोल कर सुन लें कि इस सदी के महापुरुषों ने पत्‍थर में छुपी आत्‍माओं को पहचान लिया है ।
उनका कहना है कि कोई जन्‍म से पत्‍थर नहीं होता बल्कि हालात उसको पथरा देते हैं । हमारे आस-पास, जब देखो तब मान्‍यताऐं व नैतिकता मर-मर कर पत्‍थर हुई जा रही है और ... साम्‍प्रदायिक सदभाव बिगाड़ने वाले इन पत्‍थरों को अपनी छतों पर चढ़ा कर गाहे- बगाहे पत्‍थरबाजी के खेल में इस्तेमाल करते हैं । सड़क पर पड़े हुए ये मरे -मरे संग, सिर्फ सरकारी काम में रोडे अटकाने के ही काम आ रहे हैं । सच पूछे तो हमने ही इन बेज़बान पत्‍थरों के दर्द को समझकर इन्‍हें मूर्त रूप देने का प्रयास किया है। आज जब एक भाई दूसरे भाई का सर पत्‍थर से फोड़ना को फिर रहा है, तब हमने उनमें आपसी भाईचारा बनाये रखने के लिये इन्‍हें उनके खतरनाक इरादों को ध्‍यान में रखकर ही, उनसे छीना है और ... संगतराशी के बाद सड़कों, चौराहों और पार्कों में सजाने का बीड़ा उठाया है । इससे जहां वह पत्‍थर दिल इंसान सज़ा पाने से बच जायेगा वहीं ये पत्‍थर मूर्ति रूप में सजकर शहर की शोभा बढायेंगे ।
हमारे इस जन-जन के मन को जीतने वाले अभियान पर न जाने क्‍यों हो-हल्‍ला हो रहा है । अब तो न्‍यायालय के साथ-साथ चुनाव पर नजर रखने वाले भी हम पर टेढी नजर कर रहे हैं ... और चुन-चुन कर नोटिस भेजने में तुले हैं । उन्‍हें नहीं मालूम कि हमारे खास संदेश पर तो अब मानसून महाराज ने भी मुहर लगा दी है और उसी की ताल पर उन्‍होंने बहुजन सूखाय का स्वर मिला दिया है । ऐसे माहौल में हम गली –गली और शहर-शहर में मूर्तियां लगाकर ये संदेश देना चाहते हैं कि अगर किसी को उ प्रदेश में रहना है तो इन मूर्तियों से कुछ सीख़ें । इन पर सर्दी-गर्मी, बरसात से कोई फर्क नहीं पडता । मूर्ति बन चुके लोगों के चेहरे की चमक आजकल ज्‍यादा निखर रही है... जब ये भी तुम्‍हारे तरह से दाल रोटी के चक्‍कर में चकर घिन्‍नी बने रहते थे तो यह लुटे –पिटे से दिखते थे । आज हमने न केवल इन्‍हें आत्‍म गौरव से परिचित कराया है बल्कि अन्य लोगों को इनसे रश्‍क होने लगा है । नतीजतन ये एक दम तने खडें रहते हैं और हमारे हौसले बढे रहते हैं ।

हॉं ! रही बात हाथी प्रतिमाओं की तो ... ये सब क्‍यों भूल जाते हैं कि हाथी हमारी पौराणिक परम्‍पराओं के साथ-साथ यह मानव इतिहास का हिस्‍सा है । उसकी प्रतिमाओं को लगाकर हम आने वाली पीढ़ियों को हाथी के कद-काठी की सही जानकारी देना चाहते हैं । हम ये भलीभाँति जानते हैं कि आने वाले समय में पर्यावरण की मार झेल कर ये हाथी सिर्फ हाथ भर का ही रह जायेगा और ... झकाझक कुर्ता-पाजामा पहनने वाले हाथी रूप में आ जायेंगे । ऐसे में हमारी पत्‍थर की ये हाथी प्रतिमाऐं नई नस्ल को पौराणिक हाथी और हाथी बन चुके आकाओं के बीच का अंतर बताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभांयेगी ।

तो...सुधी पाठकों! पत्‍थर के प्रति इतने संवेदनशील संतों की वाणी सुन कर, भले ही आम की तरह लटके हुये आम आदमी के दिल में हरकत चाहे न हुई हो परंतु अपुन का मन तो रूठे सावन में रह-रहकर यह गा रहा है ... पत्‍थर के देवता मिले, शीशे का दिल लिये, जाऊं कहां...

Wednesday, June 25, 2008

Samayik

दोहे
मची हुई है खलबली, चारों ओर भिड़ंत ।
सत्ता सुख की होड़ में, डाकू कैदी संत ।।

संविधान की ओढ़नी, खिचती बारम्बार ।
संशोधन के नाम पर, रफ़ू करे सरकार ।।

कहने को सह्ते रहे, सब के सब चुप चाप ।
फटी बिवाई पाँव में, बोल पड़े बुत आप ।।

काया कृष्णा हो गयी, वक्र हुई तकदीर ।
जब भी चाही देखनी, कलियुग की तस्वीर ।।

सीमा में सब कुछ उचित, सीमा लांघी बैर ।
यदि सीमित है आप तो, सदा रहेगी ख़ैर ।।

सूरज है अवकाश पर, धूप न रहती साथ ।
ठिठुर –ठिठुर कर रह गये, दिल्ली के फुटपाथ ।।

अपनों से कटुता मिली, मिला मित्रों से बैर ।
मानवता मिन्नत करें, संबंधों की ख़ैर ।।

गोवर्धन सिर पर रहा, गिरधर नहीं कहाय ।
महंगाई की मार से, मर के मर नहि पाय ।।

Samasamyak

देश की सुपर अदालत ने सीलिंग का मुद्दा उछाल कर दिल्‍ली के राजनेताओं के साथ-साथ कारोबारियों को जब पटकनी दी, तो हमें लगा कि अगर कोई अपनी जवानी में किसी की अदा पर फिदा या किसी लत का शिकार नहीं हुआ है, तो उमरिया की डगरिया के किसी पड़ाव पर अदालत के चक्‍कर में जरुर फंस सकता है । पहले के लोग अक्‍सर आन-बान और शान को लेकर खुद को या फिर पड़ोसी को अदालत की दहलीज तक खींच कर ले जाते थे...लेकिन, आजकल जब माल को लेकर सारा हिन्‍दुस्‍तान बदल रहा है, तो इस बदलते जमाने में सरकार भी अदालतों के घेरे में रहे बिना कैसे रह सकती है...इससे पहले कि सीलिंग का मुद्दा ठन्‍डे बस्‍ते में सीलने लगे, हमने सोचा कि अखबार पढ़ाकुओं तक सीलिंग की फीलिंग को पहुंचा दिया जाय ।
खैर ! जब सरकार और उसके दम पर रौब मारने वाली मुनासपिटी (म्‍युनिसपलटी) अदालत की चौखट पर जूतियां रगड़ रही हो, तो लोकतन्‍त्र के सिपाही अमन-चैन में कैसे रह सकते हैं...दरअसल, इन्‍हीं सिपाहियों को कुछ समय पहले तक फील गुड का एहसास करवाया गया था और...अब वे सीलिंग पर फीलिंग कर रहे हैं । इसी मुहिम के तहत पिछले दिनों दिल्‍ली की सड़कों पर बन्‍द के नाम पर जो सब खुलकर सामने आया...उससे खबरों को खुरचने वाले चैनलों का भरपूर खुराक मिली । कहीं व्‍यापारियों के सामूहिक मुण्‍डन को बार-बार दिखाया तो कहीं चप्‍पलों-जूतों को हाथ में लेकर तड़ातड़ वार के नज़ारों को फिलमाया गया । जो कारोबारी किस्‍म-किस्‍म की कारों के बावजूद अपने रिश्‍तेदारों की बारातों में नहीं पहुंच पाते हैं, वही पुतले की शवयात्रा में झूमझूम कर नाचते तथा छातियां पीटते देखे गये ।

Wednesday, March 12, 2008