देश की सुपर अदालत ने सीलिंग का मुद्दा उछाल कर दिल्ली के राजनेताओं के साथ-साथ कारोबारियों को जब पटकनी दी, तो हमें लगा कि अगर कोई अपनी जवानी में किसी की अदा पर फिदा या किसी लत का शिकार नहीं हुआ है, तो उमरिया की डगरिया के किसी पड़ाव पर अदालत के चक्कर में जरुर फंस सकता है । पहले के लोग अक्सर आन-बान और शान को लेकर खुद को या फिर पड़ोसी को अदालत की दहलीज तक खींच कर ले जाते थे...लेकिन, आजकल जब माल को लेकर सारा हिन्दुस्तान बदल रहा है, तो इस बदलते जमाने में सरकार भी अदालतों के घेरे में रहे बिना कैसे रह सकती है...इससे पहले कि सीलिंग का मुद्दा ठन्डे बस्ते में सीलने लगे, हमने सोचा कि अखबार पढ़ाकुओं तक सीलिंग की फीलिंग को पहुंचा दिया जाय ।
खैर ! जब सरकार और उसके दम पर रौब मारने वाली मुनासपिटी (म्युनिसपलटी) अदालत की चौखट पर जूतियां रगड़ रही हो, तो लोकतन्त्र के सिपाही अमन-चैन में कैसे रह सकते हैं...दरअसल, इन्हीं सिपाहियों को कुछ समय पहले तक फील गुड का एहसास करवाया गया था और...अब वे सीलिंग पर फीलिंग कर रहे हैं । इसी मुहिम के तहत पिछले दिनों दिल्ली की सड़कों पर बन्द के नाम पर जो सब खुलकर सामने आया...उससे खबरों को खुरचने वाले चैनलों का भरपूर खुराक मिली । कहीं व्यापारियों के सामूहिक मुण्डन को बार-बार दिखाया तो कहीं चप्पलों-जूतों को हाथ में लेकर तड़ातड़ वार के नज़ारों को फिलमाया गया । जो कारोबारी किस्म-किस्म की कारों के बावजूद अपने रिश्तेदारों की बारातों में नहीं पहुंच पाते हैं, वही पुतले की शवयात्रा में झूमझूम कर नाचते तथा छातियां पीटते देखे गये ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment